आया है नव वर्ष …
नये संकल्प आज दोहराते हैं ,
नहीं अपेक्षा कर दूजों से
स्वयम्सिद्ध बन जाते हैं
चलो सुनहरे सूरज से
किरणें उधार ले आते हैं
खोल बन्द दरवाज़ों को
आलोक वहाँ फैलाते हैं!
पूनम की उजियारी से
चंदा की जोत चुराते हैं
दग्ध धरा पर डाल उन्हें
कुछ शीतलता फैलाते हैं।
भरकर थोड़ी हरियाली
इन आँखों में ले आते हैं
जहां खिले न इन्द्रधुनष
इक बगिया वहाँ सजाते हैं।
जाकर कहीं लड़कपन से,
कुछ किलकारी ले आते हैं
पोंछ अश्क़ की बूँदों को
अधरों पर इन्हें खिलाते हैं!
माँ की मौन प्रार्थना से
निस्वार्थ दुआएँ लाते हैं
जा कर किसी अनाथालय में
चुपके से दे आते हैं!
शंखनाद इक मंदिर से
मस्जिद से अजानें लाते हैं
ओंकार में मिला उन्हें
इक मौलिक मंत्र बनाते हैं!
कहाँ कहाँ ईश्वर पहुँचेगा
बहुत काम हैं करने को
बन कर सच्चे दूत चलो
कुछ थोड़ा हाथ बँटाते हैं !!
उषा लाल