वफा मेरी कलम निभाई
शब्दों को संजोए बैठी मैं दिन रात
ये शब्द ही तो हैं जो रहे मेरे साथ
करने लगते जैसे मुझसे ये हर बात
बातो में ही खोल देते मेरे हर राज़।।
जाना हर राज़ मेरा दगा कर जाते
शब्द सभी बात जज़्बात को बताते
जज़्बात भी जाके कलम को बताते
सब मिल फिर क्या षड्यंत्र रचाते।।
ये सभी मित्र मुझसे ही दगा कर जाते
शब्द ,जज़्बात , कलम मुझे ही सजाते
कहती मेरा दर्द यूं किसी को ना बताओ
ये कम्बख्त मुझे ही मिल चुप कराते।।
मैं कहती लोग मेरा ही दर्द पढ़ हसेंगे
शब्द कहते चुप ये वाह वाही ही करेंगे
जज़्बात कहते मैं हूं ना दर्द बांटने को
कलम कहती मैं हूं मरहम लगाने को।।
सच इनका साथ पा मैं पहचान पाई
दर्द-ए चार दीवारी से मैं निकल पाई
आज पहचान पा अपना वज़ूद देख
वीणा , मधुर तान छेड़ मुस्कुराई।।
निर्मल जैन की कविता मेरा गाँव
वफा मुझसे मेरी कलम निभाई।।२।।
वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
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